The publication work of forth issue of HimNayani have been started. Devender Sharma is the Editor in Chief of this issue.

विगत अंक

हिमनयनी 
राजकीय वरिष्‍ठ माध्‍यमिक विद्यालय कल्‍होग की वार्षिक पत्रिका  
अंक-2                                                       वर्ष 2011 

प्रधानाचार्या की कलम से
मेरे लिये यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि हमारे विद्यालय की वार्षिक पत्रिका हिम नयनीका द्वितीय अंक आपके हाथों में आने जा रहा है।
यह कार्य जहां विद्यार्थियों की प्रतिभा का प्रतीक है, वहीं विद्यालय में कार्यरत उन कर्मठ अध्यापकों की कार्य-कुशलता का प्रमाण भी है जो प्रतिभा रूपी हीरे के पारखी ही नहीं उन्हें तराशना भी बखूबी जानते हैं। मैं अपने आप को गौरवान्वित अनुभव करती हूं कि मुझे इस प्रकार की प्रतिभाओं से सम्पन्न विद्यालय में कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त है। 
हमारे विद्यार्थी पढ़ाई के साथ-साथ अन्य पाठ्येत्तर गतिविधियों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लेते रहे हैं। जिससे कि उनका सर्वांगीण विकास संभव हो पा रहा है। मेरा प्रयास रहा है कि एक ओर कम्प्यूटर व इंटरनैट जैसे अत्याधुनिक माध्यमों के प्रयोग द्वारा उन्हें भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिये तैयार किया जाये और साथ ही ध्यान, योग जैसी हमारी विरासत से परिचित कराकर उन्हें भारतीयता के गुणों के संरक्षक के रूप में जीवन जीने को प्रेरित किया जाये। ताकि समाज को केवल मशीनी पुर्जों जेसै कामकाजियों की बजाय ऐसे नागरिक मिलें जो नशेड़ी, उद्दंड या अनुशासनहीन न हों, बल्कि उनमें शाश्वत मानवीय मूल्यों के प्रति निष्ठा और आदर भाव हो। मैं विद्यार्थियों, अध्यापकों एवं अभिभावकों की आभारी हूं कि इस महायज्ञ में हर कदम पर मुझे सभी का सहयोग मिलता रहा है।    
विद्यार्थियों से मेरा अनुरोध है कि वे अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिये पुरुषार्थ का मार्ग अपनायें। विपत्तियों और विपरीत परिस्थितियों में भी बुद्धिमता से संघर्ष करते हुये उनसे निकलने को प्रयत्नशील हों:
     वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या
              जिस पथ में बिखरे शूल न हों।
     नाविक  की  धैर्य  परीक्षा  क्या
              जब  धारा  ही प्रतिकूल न हो।
जिस प्रकार चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होकर धीरे-धीरे बढ़ते हुये पूर्ण होकर सबको शांतिदायक प्रकाश देता है, उसी प्रकार आप भी अपने अध्यापकों से विद्या रूपी प्रकाश को ग्रहण करके धीरे-धीरे पूर्णता को प्राप्त करें और संसार को प्रकाशित करें। चन्द्रमा की तरह ही तरह हमेशा शांत-शीतल और धैर्यवान् बने रह कर सर्वत्र अपना कल्याणकारी प्रकाश फैलायें।
सभी अध्यापकों, विद्यार्थियों तथा सहयोग प्रदान करनेवाले विज्ञापनदाताओं को इस अंक के सफल प्रकाशन हेतु मेरी ओर से हार्दिक आभार एवं कोटि-कोटि शुभकामनाएं ।

सुमन सूद
प्रधानाचार्या

सम्पादकीय लेखनी से............
लगभग आठ वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद हिमनयनीका यह दूसरा अंक आपके हाथों में है।
जैसा कि आप जानते ही हैं कि अध्ययनरत विद्यार्थियों के सक्रिय सहयोग के बिना न तो विद्यालय पत्रिका का कोई अस्तित्व ही है और न ही कोई महत्त्व। इसीलिये सभी संकायों के विद्याथियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये इस पत्रिका को छह अनुभागों में विभक्त किया गया है। विद्यालय की गतिविधियों और उपलब्धियों का सातवाँ रंग जुड़ जाने से पत्रिका की छवि इंद्रधनुषी हो गई है। जीवन के विविध क्षेत्रों से संबंधित रचनाएँ पत्रिका को संपूर्णता प्रदान करती हैं। इस प्रकार यह अंक सन् 2003 में मात्र 39 पृष्‍ठों से शुरू हुई हिमनयनीकी जीवनयात्रा का एक स्वर्णिम पड़ाव बन गया है। 
सूचना क्रांति के इस युग में मुद्रित माध्यमों के सामने प्राणसंकट उपस्थित हो गया है। इसका एक प्रभाव यह भी पड़ा है कि साहित्य के पारंपरिक  विधि से पठन-पाठन में पाठकों की रुचि बनाये रखना भी एक चुनौति बन चुका है। प्रस्तुत पत्रिका को पढ़कर यह निस्संकोच कहा जा सकता है संख्या में कम होने के बावजूद हमारे विद्यालय के विद्यार्थियों ने हिमनयनीके लिये पठनीय एवं संग्रहणीय सामग्री जुटाकर इस चुनौती को स्वीकार किया है। इन्हें पढ़कर संतोष होता है कि इन रचनाओं में अखबारीपन कम सत्यम् शिवम् सुन्दरम्की भावना अधिक झलकती है। संपादक मंडल ने पत्रिका के लिये एक ही कसौटी निर्धारित की थी कि यदि 20 साल बाद भी कोई विद्यार्थी अपनी इस पत्रिका को उठाकर देखे तो भी उसे यह अनुभव हो कि इसमें उसके पढ़ने के लिये अब भी बहुत कुछ है।     
पत्रिका के विद्यार्थी संपादकों के रूप में कार्य करने का अवसर बारहवीं कक्षा के जिन विद्यार्थियों को दिया गया है, वे विद्यालयी शिक्षा पूर्ण करके जीवन के अगले पड़ाव में कदम रखने जा रहे हैं। चाणक्य का कथन है कि जिससे हम कभी एक अक्षर भी सीखते हैं, वह भी हमारे लिये गुरु है, वंदनीय है; अतः विद्यालय में दिये गये संस्कारों के आधार पर हम विश्‍वास करते हैं कि आप यहाँ से जाने के बाद भी सभी गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता एवं सम्मान की भावना की स्वस्थ परंपरा के वाहक बनेंगे। 
सहित समाज हमार तुम्हारा। बन गृह गुर प्रसाद रखवारा।।
क्योंकि यदि गुरु विद्या का भंडार है, उसमें विनयशीलता है और वह पूर्वाग्रहों से मुक्त है तो कबीर के इस कथन के प्रति अविश्‍वास प्रकट करने का कोई आधार नहीं हो सकता कि बाहरी तौर पर कड़ा व्यवहार करने के बावजूद गुरु का स्नेहभरा हाथ हमें अंतर में सदैव सहारा प्रदान करता रहता है।
वास्तव में गुरु-प्रसाद वह दृष्टि है जो कि इस विद्या मंदिर में आपको प्रदान की गई है। यही वह दृष्टि है जो आपको हर प्रकार के बंधनों से मुक्त करने के लिये सा विद्या या विमुक्तयेकी  शास्त्रीय कसौटी पर हमेशा खरी उतरेगी। जब कभी भी आपको किसी मार्गदर्शन की आवश्‍यकता महसूस होगी, जब कभी आप को गुरुजनों के दिये पाथेय को टटोलने की जरूरत पड़ेगी, तो हिमनयनीका यह अंक आपकी स्मृतियों में अवश्‍य उभरकर आयेगा। जिसमें सबकुछ आप सभी विद्यार्थियों का संकलित है, ‘मयैवैते निहिताः पूर्वमेव...निमित मात्र मुझे प्रधान-संपादक का दायित्व सौंपा गया था। अपने गुरुदेव की कृपापूर्ण प्रेरणा से आपकी होने पर भी रचनाओं और उपलब्धियों की यह पुष्पांजलि आपको समर्पित करने की इस जटिल भूमिका का निर्वाह इन संतवचनों के साथ कर रहा हूँ-
मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझ को सौंपते, क्या लागे मेरा ।।

विनीत-
देवेन्द्र शर्मा, प्रवक्ता-हिन्दी


हिन्‍दी अनुभाग 

अपनी हिन्दी!

अपनी हिन्दी!जी हाँ, यह एक शब्द सुनते ही हमारे अंतर में किसी कोने में महत्त्वहीन सा लगनेवाला दबा पड़ा आत्मीयता का तंतु झनकृत हो उठता है। एक ऐसा तंतु जो हमें अपनी पहचान, अपनी विरासत, अपनी मिट्टी और अपनी परंपरा से जोड़कर अपनी जड़ों का अहसास कराता है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति कितना ही विकास क्यों न कर ले उसका अपनी मातृभाषा से सदैव स्‍नेह बना रहता है और हिन्दी तो एक साथ मातृभाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, जनभाषा, माध्यम भाषा और न जाने कितने ही रूपों में अपना दायित्व निभा रही है- सचमुच हमारी माँ की तरह, निरंतर स्‍नेहपूर्वक हमारी सेवा कर रही है। जो भाषा इतनी समृ़द्ध है और जिसे उसके पुत्रों का हार्दिक स्‍नेह प्राप्त है, मेरा मानना है कि वह सारे देश में व्यवहार में लाये जाने के लिये संविधान के अनुच्छेद 343 की मोहताज नहीं हो सकती।
पत्रिका के हिन्दी अनुभाग में अपना योगदान देकर विद्यार्थियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि हिन्दी केवल इस विषय को पढ़नेवालों की ही नहीं है, यह तो विज्ञान, वाणिज्य, मानविकी- सभी की है, क्योंकि यह अपनी है। प्रकारांतर से हिमनयनी के इस अंक ने हिन्दी के महत्त्व और स्वीकार्यता पर भी अपनी मोहर लगाई है- जिसमें हैं जीवन के विविध रंग और उन्हें चित्रित करने के विविध ढंग। जहां तक लेखन शैली का प्रश्न है यहां आलेख को काफी हद तक केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा देवनागरी लिपि में सुझाये गये परिवर्तनों के अनुरूप ढालने का प्रयास किया गया है।
इस वर्ष हिन्दी ने अपने कई सपूतों को खोने की पीड़ा झेली है। जिनमें मष्त्यु से केवल दस दिन पहले ही ज्ञानपीठ पुरस्कार को पा कर हिन्दी के नौ रत्‍नों में शामिल होने वाले श्रीलाल शुक्ल प्रमुख हैं। ऐसे हिन्दी सेवियों को श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के साथ ही मैं आप सभी का हिन्दी-सेवा के इस महायज्ञ में अपना योगदान देने के लिये अभार व्यक्त करता हूँ और साथ ही याद दिलाना चाहता  हूँ कि आज हमें गुलामी के कलंक को धोकर वैसी ही इच्छा शक्ति की आवष्यकता है जैसी स्वतंत्रता के बाद महात्मा गांधी ने दिखाई थी और अंग्रेजी में संदेश माँगने वाले एक ब्रिटिश पत्रकार को टका सा जवाब दिया था, ‘दुनिया से कह दो कि गांधी अंग्रेजी भूल गया।
इससे पहले कि अपनी भाषा का स्वप्‍न  टूट जाये,
कोई घुसपैठिया भेस बदलकर हमें लूट जाये,
हम सबको जागना होगा, जगाना होगा-
अपनी हिन्दी को उसका स्थान दिलाना होगा।
                                                -देवेन्द्र शर्मा
                                                प्रवक्‍ता -हिन्दी

हम भारत की नारी हैं
भारत सदा से ही पुरुष प्रधान देश माना जाता रहा है। लेकिन इक्कीसवीं सदी में भारत की महिला ने घर की चौखट लांघ दी है, अब वह पुरुषों के कंधों से कंधा मिलाकर चल रही है। भारत में महिलाओं को जब भी अपनी क्षमता को प्रदर्शित  करने का मौका मिला है, उन्होंने बखूबी अपने आप को साबित किया है। युद्ध के मैदान से लेकर राजनीतिक गलियारों तक में भारतीय महिलाओं ने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है। 1755 के आसपास अमेरिका में भी अविवाहित महिलाओं को ही मत देने का अधिकार था। न्यूजीलैंड में महिलाओं को वोट देने का अधिकार 1893 में प्राप्त हुआ। दुनिया के  चौधरी अमेरिका में लगभग एक दशक की लड़ाई के बाद 1920 में यह हक मिल सका।
भारत में मुग़ल शासक रजिया सुल्तान दुनिया भर में संभवतः पहली महिला शासक थी जिन्होंने 1236 में दिल्ली की सल्तनत संभाली हो। 1524 में पैदा हुई गौंड शासिका रानी दुर्गावती ने अपने पति राजा दलपत शाह के निधन के उपरांत शासन संभाला और अकबर के विरुद्ध वीरता के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुईं। 1725 में जन्मी अहिल्या बाई ने अपने पति खांडेराव होल्कर की मौत के उपरांत 1854 में होल्कर रियासत की जवाबदारी संभाली। कर्नाटक के कित्तूर की रानी चेनम्मा ने अंग्रेजों के साथ जमकर जंग लड़ी, बाद में उन्हें एक किले में नजरबंद कर दिया गया था, जहां उनका देहावसान हो गया था।
सुप्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की बात किए बिना महिलाओं की शक्ति की बात अधूरी ही रह जाएगी। क्योंकि उनके द्वारा झांसी की रानी का कविता के रूप में बखान इतना मीठा और जीवंत है कि आज भी बच्चे, युवा, प्रौढ़ या उमरदराज लोग -खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थीजैसी पंक्तियाँ गुनगुनाते मिल ही जाते हैं। 1834 में जन्मी लक्ष्मीबाई ने गंगाधर राव की मौत के बाद गद्दी संभाली थी। अंग्रेजों ने इनके गोद लिए बेटे को वारिस मानने से इनकार कर दिया था। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया और आजादी की पहली लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुईं।
आजाद भारत में प्रियदर्षनी इंदिरा गांधी ने जिस ऊँचाई को छुआ उसे पाना शायद ही किसी के बस की बात हो। देश  को 2007 में पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति के तौर पर प्रतिभादेवी सिंह पाटिल मिली। इसके उपरांत लोकसभा में पहली महिल  अध्यक्ष के तौर पर मीरा कुमार भी मिल गईं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी श्रीमती सुषमा स्वराज हैं। स्वतंत्र भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री साठ के दशक में सुचिता कृपलानी थी। इसके बाद उड़ीसा में नंदिनी सत्पथी मुख्यमंत्री बनी। मध्य प्रदेश में उमा भारती भी मुख्यमंत्री रही। सत्तर के दशक में महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी की शशिकला काकोडकर ने केंद्र शासित प्रदेश गोवा में मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला। अस्सी के दशक तमिलनाडू में जानकी रामचंद्रन ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। सुषमा स्वराज दिल्ली, राबड़ी देवी बिहार, वसुंधरा राजे राजस्थान, तो राजिन्दर कौर भट्ठल पंजाब में सफल मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।
वर्तमान में दिल्ली में शीला दीक्षित, उत्तर प्रदेश में मायावती, पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी और तमिलनाडू में जयललिता मुख्यमंत्री हैं। 1236 में रजिया सुल्तान की ताजपोशी से आरंभ हुआ नारी सशक्तिकरण का सिलसिला 775 सालों बाद भी बरकरार है। ऐसी मातृ-शक्ति को हमारा शत-शत नमन्।
- उर्मिला, विद्यार्थी संपादिका, 10+2 (मानविकी) 

भाँग के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
संपूर्ण विश्‍व में लोग नशों के बढ़ते प्रयोग को लेकर चिंतित हैं। इनमें से भाँग भी एक प्रमुख नशा है जिसे चरस भी कहा जाता है। इसे सिगरेट, बीड़ी या चिलम में भर कर पीया जाता है। शायद आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भाँग के पौधे में 400 से अधिक रसायन होते हैं। इनमें दिमाग को प्रभावित करने वाला घातक रसायन डेल्टा-9-टेटराहाइड्रोकेनेबिनोल भी प्रमुख रूप से शामिल है। भाँग के कुछ प्रमुख दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैः-
मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव-
भांग में मौजूद टेटराहाइड्रोकेनेबिनोल के कारण स्मरण-शक्ति, एकाग्रता, विचार-शक्ति, प्रसन्न होने की क्षमता और मेलजोल प्रभावित होता है। 1995 में कालेज के विद्यार्थियों पर किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि चरस पीने वाले विद्यार्थी इसके आखिरी बार प्रयोग के 24 घंटे बाद भी किसी विषय पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। ब्रिटेन के शोधकर्ताओं के अनुसार भाँग का सेवन करनेवालों में मानसिक व्याधियों का खतरा 40 प्रतिशत अधिक रहता है।
हृदय पर दुष्प्रभाव-
भाँग पीने के कुछ ही क्षणों बाद हृदयगति 20 से 50 धड़कन प्रति मिनट तक बढ़ जाती है और रक्तचाप गिर जाता है। इस स्थिति में भाँग पीने के पहले घंटे में दिल का दौरा पड़ने की संभावना चार गुणा बढ़ जाती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं  जैव चिकित्सकीय शोध संस्थान बाल्टिमोर ने पाया है कि जिन्हें भाँग पीने की पुरानी आदत होती है उनके खून में दिल की बीमारियों और दौरे से जुड़े प्रोटीन में भी बदलाव आ जाता है। 
फेफड़ों की कार्यप्रणाली पर दुष्प्रभाव-
इससे मुंह और गले की चेतना प्रभावित होती है, मुंह में जलन रहती है और गले में बलगम जमा रहता है। फेफड़ों के संक्रमण और छाती के रोग भी बढ़ जाते हैं। न्यूजीलैंड में 339 व्यस्कों पर किये गये एक अध्ययन से पता चला है कि भाँग से फेफड़ों की समस्याएं, साँस की बीमारियां और छाती में जकड़न पैदा हो जाती हैं। एक बार चरस पीना एक साथ 5 सिगरेट पीने के बराबर खतरनाक है।
क्या भाँग पीने से कैंसर हो सकता है?
चरस में मौजूद घातक रसायन टार साधारण सिगरेट पीने से तीन गुणा अधिक होता है। इसमें साधारण सिगरेट से 50 प्रतिशत अधिक कैंसर पैदा करनेवाले तत्त्व होते हैं। अतः यह फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है। 
अतः यदि आपको अपनी, अपने स्वास्थ्य और परिवार की जरा भी चिंता है तो भाँग आदि घातक नशों को नाकहिये।                                              
-मीना कुमारी, 10+2(मानविकी)

क्यों जरूरी है संयम?
रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था-संयम ही जीवन है, असंयम ही मृत्यु।संयम मन, इंद्रियों व चितवृत्ति के निग्रह को कहते हैं।  जीवन में प्रत्येक सफलता के पीछे संयम का बल ही काम करता है। जिस प्रकार शराबी चालक गाड़ी को खड्डे में डाल देता है और अनियंत्रित घोड़े रथ को चकनाचूर कर देते हैं, उसी प्रकार असंयमी व्यक्ति का खान-पान, सोना-जागना, भोजन, निद्रा, ब्रह्मचर्य अनियमित होने से वह अनेक कष्टों में पड़ जाता है और दोष देता है अपने भाग्य को।
आत्मानुशासन संयम का ही दूसरा नाम हैं। एक लेखक ने कहा है-पहले खुद पर शासन, फिर अनुशासन! आत्म-नियंत्रण से ही व्यक्ति का चरित्र मजबूत होता है। संयम के अभाव से ही व्यक्ति में अनेक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आत्मिक रुग्णताएं आती हैं। संयम को मनोनिग्रह भी कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में समझाया-हे अर्जुन! शरीर रूपी रथ का सारथी यह मन है और आत्मा इसमें सवार है। अतः जीवन की यात्रा में मन का सही होना आवश्यक है।एक कहावत है-मन चंगा तो कठौती में गंगा।मन चंगा होता है संयम से। संयम भी चार प्रकार के होते हैं- समय, अर्थ, विचार  और इंद्रिय संयम।
समय के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करना समय का संयम है। जो समय का सही उपयोग करते हैं वे अपने भाग्य का निर्माण कर लेते हैं। बहुत से लोग समय का संयम नहीं रखते और व्यर्थ में समय गंवाते रहते हैं, जैसे-ताश खेलने में, गप-शप करने में, सोने में, इधर-उधर भटकने में, सिनेमा देखने में समय को नष्ट करते रहते हैं। भारतीय संस्कृति में चार पुरुषार्थों में से अर्थ (धन ) भी एक है। बिना अर्थ के संसार का विकास अवरुद्ध हो सकता है। अतः धन का सदुपयोग करना भी धर्म का ही एक स्वरूप है। अर्थ को लक्ष्मी का रूप भी मानते हैं। अतः लक्ष्मी का दुरुपयोग न करना ही अर्थ संयम है। तंबाकू पीने, गुटखा खाने, शराब पीने या व्यर्थ के कार्यों में धन का व्यय नहीं करना चाहिए।  रामचरितमानस में भी कहा गया है- सो धन धन्य प्रथम गति जाकी।अर्थात् दान में खर्च होनेवाला धन धन्य है। विचार संयम भी व्यक्तित्व को विकसित करने का सबसे बड़ा गुण है। व्यर्थ का चिंतन करते रहने से व्यक्ति का मस्तिष्क पागल के समान हो जाता है। आज तनाव एक बीमारी का रूप ले चुका है। अमेरिका में 10 प्रतिशत लोग नींद की गोली खाकर सो पाते हैं।
कठोपनिषद में कहा गया है कि शरीर रूपी रथ के इंद्रिय रूपी घोड़े मन रूपी सारथी को दसों दिशाओं में भटका रहे हैं। इंद्रिय संयम रखने वाला व्यक्ति दीर्घायु प्राप्त करता है। इससे ही आत्मबल, मनोबल व बुद्धिबल बढ़ता है। ब्रह्मचर्य पालन व सतोगुणी भोजन करने वाला मिताहारी व्यक्ति सौ वर्ष जीता है। एक कहावत है-जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन। जैसा पीवे पानी, वैसी बोले बानी।अन्न की शुद्धि का अर्थ है कि वह ईमानदार साधनों से कमाया गया हो। किसी भ्रष्टाचारी के पैसों से खरीदी गई एक छोटी सी टॉफी खाना भी हमारा मानसिक संतुलन बिगाड़ सकती है। यदि कोई व्यक्ति अपने कार्यालय से नियत समय से 10 मिनट पहले भी घर जाता है- तो उसका धन शुद्ध नहीं हो सकता और फिर उसका मन भी शुद्ध नहीं हो सकता। अतः अन्न की शुद्धि व मन की चंचलता पर रोक लगाने वाला व्यक्ति ही महान बन सकता है।
-मीनाक्षी ठाकुर, +2(मानविकी)

कहानी मेरे गांव की- गांव रूड़ा
मेरे गांव का नाम रूड़ा है। इस गांव में पत्थर बहुत होते थे। जिसे लोग रोड़े कहते थे। इससे यहां का नाम रूड़ा पड़ा है। कहा जाता है कि इस गांव में राक्षसों का राज हुआ करता था। जब इस गांव में कोई इन्सान रहने आए तो राक्षसों ने उन्हें बहुत तंग किया। कहा जाता है कि वह सारी रात लोगों को अपने में खारिश करने में लगाया करते थे। मज़बूरी और डर के मारे लोगों को उनका काम करना पड़ता था। नहीं तो लोगों को मार दिया जाता था। जब लोगों से कोई चीज उधार ली जाती थी तो वह लेते तो खाली बरतन में थे, पर वापस उल्टे बरतन के ऊपर की जाती थी। लोग काफी परेशान हो गए थे। तब किसी बुजुर्ग से सलाह ली गई कि इन राक्षसों से पीछा कैसे छुड़ाया जाए। एक बुजुर्ग ने सलाह दी कि क्यों न इनसे कुश्ती लड़ी जाए। पहले तो कोई तैयार न हुआ। तब एक हट्टा-कट्टा इन्सान तैयार हो गया और राक्षसों से बात की गई। उन राक्षसों से कहा गया कि अगर हम लोग जीत गए तो तुम राक्षसों को यह गांव छोड़कर जाना पड़ेगा। अगर तुम जीतोगे तो हम लोग यह गांव छोड़कर चले जाएंगे। एक दिन कुश्ती का मुकाबला हो गया। फिर वह पहलवान जीत गया और राक्षस हार गए। राक्षस वहां से चले गए। फिर राक्षसों ने लोगों से कहा कि हम जाएंगे कहां? तब हमारे गांव देवता मुहावने ने यह कहा कि इन राक्षसों को झरने (झाल) में डाल दिया जाए। कालांतर में उन राक्षसों की भी  पूजा की जाने लगी। इन राक्षसों का स्थान कहलोग स्कूल के नजदीक है। अब इसे झाल देवता भी कह दिया जाता है।
इस गांव में 22 देवता हैं। इन देवताओं में से एक देवता तीड़ू देवता के नाम से है, जिसे लोग साल में दो बार पूजते हैं। कहा जाता है कि यह तीड़ू ब्राह्मण हुआ करता था। यहां जुनगा के राजा का राजमहल हुआ करता था। यह ब्राह्मण उन्हीं राजा का खास था। एक दिन राजा सुबह शिकार खेलने जा रहा था तो तीड़ू ब्राह्मण भी वहां पर आ गया। राजा ने मज़ाक में कहा-आज सुबह ही तीड़ू-भीड़ू के दर्शन हो गए। आज शिकार नहीं मिलेगा। ब्राह्मण बुरा मान गया और उसने अपना सर तलवार से काट दिया। मरने के बाद राजा को ब्राह्मण हत्या का पाप चढ़ गया। तब राजा ने पण्डितों से पूछा-उन्होंने बताया कि तुम तीड़ू को जगह दे दो, तभी पापमुक्त होगे। तब राजा ने तीड़ू को चार गांव दे दिए, जिसमें से रूड़ा गांव एक है। आज भी यह ब्राह्मण तीड़ू देवता के नाम से पूजा जाता है। राजा पापमुक्त हो गया और जुनगा चला गया। कालांतर में रूड़ा में चायल के कोट-भड़ेच से आए छिब्बर वंश के बहुत से लोग बस गये। इसलिए इस गांव को छिब्बर गांव भी कहते हैं।
कहा जाता है कि एक बार इस गांव में आदमी अकारण ही मरने लगे और केवल दो भाई बच गए, तो वह जमीन पर से लड़ने लग गए। जब वह तलवार से एक-दूसरे का सिर काटने लगे तो वहां नाग देवता प्रकट हो गए और उन्होंने उनकी लड़ाई का कारण पूछा। जब बताया तो कहने लगे अगर मेरा फैसला मंजूर हो तो मैं तुम्हें बताता हूं। तब नाग देवता ने कहा-मेरे दोनों तरफ आओ मैं बीच में चलता हूं। पहला एक तरफ की जमीन लेना और एक दूसरी तरफ की। नाग देवता भी बीच से चलता रहा और दोनों भाई भी इधर-उधर से चलने लगे। इस तरह से आज भी हमारे गांव में वह रास्ता खेतों के बीच से है जहां से नाग देवता गए थे।   
                      - ज्योति ठाकुर, +1 (मानविकी)

कविताएं-

टूटे न ये घर

हर दीवार टूट जाए
हर दरार जुड़ जाए
कोई भेद न रहे
दुनिया प्रेम से सजे।
मनुष्य-मनुष्य के लिए बने
एकता का बल बढ़ा-
मिल बांटकर रहें सदा,
न हो हिंसा की सजा।
बनाएं हम सब एक ऐसा रिश्ता
बस जाए दिल हमेशा
कट जाए किसी का सर
पर टूटने न दें ये घर।
                    -हेमावती, अष्टम् श्रेणी

नशा
नशा हमारे जीवन का, बन गया दीन ईमान है।
भांग, शराब और चरस में    निकलती सबकी जान है।
नशे में नहीं फिक्र घर और अंजाम की
नशे में झूमता, हर बूढ़ा और जवान है।
इन मजनुओं को देखिए, जो मुहब्बत में नाकाम हैं
लैला का नाम लेकर, चढ़ाते रहते जाम हैं।
शराब पीकर छुरी चलाना, इनके बायें हाथ का खेल है
तंग करके रखा है सबको, ये बिना सींग के बैल हैं।
औरों को छोड़िए, जिन्हें कहते सब साधु और विद्वान हैं
जो तिलक लगाने में समझते खुद को महान हैं।
हिम्मत करके उनको पूछो तो मिलता यह जवाब है
अरे मूर्ख मानव! यह भांग तो शिव का प्रसाद है।
गौरवशाली हमारी संस्कृति को बट्टा लगा रहे हैं
बाप-बेटा साथ मिलकर सट्टा लगा रहे हैं।
कंधे से कंधा मिलाकर, सचमुच नारी चल रही है
एक हाथ में बोतल, दूसरे में सिगरेट जल रही है।
तुम भटक गए हो राह से, यह मंजिल नहीं तुम्हारी है
शराब दवा नहीं है, ये तो महामारी है।
आबादी और बरबादी में एक कदम का फासला है
समझाना हमारा फर्ज था आगे अब मर्जी तुम्हारी है।
-ज्योति ठाकुर, +1 (वाणिज्य)
दोहे
नशा करने वालों को, देख दिया मैं रोय।
औरन को दूषित करे, आपुहि दूषित होय।।
तम्बाकू दे चेतावनी, तू क्यों रौंदे मोय।
धीरे-धीरे मैं भी तो, रौंद रहा हूँ तोय।।
थोड़ी-थोड़ी पीते-पीते, आदत बनी शराब।
पेट में जाके यही शराब, बन जाऐ तेज़ाब।।
ऐ मूरख इन्सान तू क्यों नशे के पीछे धाय।
इक दिन ऐसा आएगा, नशा तुझे खा जाय।।
मानव नशा तू छोड़ दे, रख ले अपनी लाज़।
वरना आधी उमर में, ले जायेगा यमराज।।
-यादविंद्र कश्यप, +2( मानविकी)

माता-पिता
उस माँ को न रुलाना यारो,
उस माँ को न सताना यारो।
जिस माँ ने हमें नौ महीनों तक पेट में रखा,
नौ महीने के बाद जब हम धरती पर आए,
तब माँ ने हमें अपनी गोद में सहलाया,
अपने लहू का दूध बनाकर हमें पिलाया,
उस माँ को न रुलाना यारो, उस माँ को न सताना यारो।
जब हम रात को न सोते, माँ बरामदा नापती रहती,
सारी दुनिया सो जाती, माँ बरामदे में हमें घुमाती रहती,
जब हुए हम कुछ बड़े, माँ हमें अंगुलियों से चलता सिखाती,
जब हम गिर जाते तो माँ ही हमें संभलना सिखाती,
उस माँ को न रुलाना यारो, उस माँ को न सताना यारो।
पिता ने अपने आप भूखा रहकर हमें भोजन कराया,
हमारी खातिर कहां-कहां से कर्ज लाया,
बच्चे अच्छे बनें, इसके लिए हर कर्त्तव्य निभाया,
खून पसीना एक करके बच्चों के सपनों को पूरा कराया,
उस पिता को न रुलाना यारो, उस पिता को न सताना यारो।
-उर्मिला, 10+2( मानविकी)

वे... मेरे पिता हैं
जब मैं बीमार होती हूं
तो वे कभी मेरे सिरहाने नहीं बैठते,
लेकिन मेरी फिक्र में
रातभर जागते रहते हैं।
मेरे कमरे में
आकर कभी
मेरा हाल नहीं पूछते ।
लेकिन माँ से
हमेशा मेरे बारे में पूछा करते हैं।
जब माँ
काम में व्यस्त होती है
तो मेरे
उलझे हुए बालों पर कंघी करना
उनके लिए
वाकई मुश्किल होता है,
माँ जब घर पर नहीं होती
तो मुझे
नाश्ते में आइसक्रीम
मिल जाया करती है ।
कितना कुछ ऐसा है,
जो केवल वे ही कर सकते हैं,
वे-
मेरे पिता हैं।
-पूनम शर्मा, 10+2 (वाणिज्य)

बेटी
माँ,
मैं तुम्हारा ही तो
एक अंश हूं।
माँ,
मैं तुम्हारा ही तो
एक अंग हूं।
भैया की तरह ही
नौ महीन पाला मुझे तुमने,
वैसी ही तो पीड़ा सही
मेरे जन्म के वक्त तुमने,
सब कुछ जब भैया जैसा ही था
तब क्यों किया,
अंतर हममें
क्या हुआ अगर मैं लड़की हुई,
अंतर तो माँ,
तुम में और मुझमें भी कुछ नहीं,
फिर भी तुमने हर जगह क्यों की
भैया की ही बड़ाई।
मैं भी उससे किसी बात में कम नहीं,
शायद एक कदम हूं, आगे उससे।
जब सब दरवाजे बंद मिलेंगे तुम्हें
तो मैं सहारा बनूंगी माँ,
तुम माँ हो चाहे सिर्फ भैया के लिए
पर मैं बेटे से अच्छी बेटी बनकर दिखाऊंगी।
ओ मेरी माँ !
-सोनिका, +1 (मानविकी)

परीक्षा की पूर्व रात
अंधेरी रात में, पुस्तक ले हाथ में
पढ़ने की घात में बैठी थी मैं।
सर पर था इम्तिहान
टूट रहा था आसमान।
आफत में थी मेरी जान
मौज उड़ाई पूरे साल।
अब बुरा था मेरा हाल
दिमाग को चढ़ा बुखार, बिगड़ने को था मेरा साल।
दिल कहता है बार-बार
हे प्रभु करो मेरी नैया पार।
फिर कभी न होगी ऐसी भूल
पढ़ूंगी मन लगाकर पूरा साल।
-सीताअष्टम श्रेणी

माता-पिता
माता-पिता है भगवान समान
कभी न करो इनका अपमान।
नहीं चाहते ये तुमसे धन
तुम्हारा चाहते हैं क्ल्याण।
सदा करो उनका आदर
जिनकी कहलाते हो तुम संतान।
करते हैं जो पालन-पोषण
उनका मानो तुम एहसान।
देखो, न हो वे कभी दुःखी
रखना सदा इन्हें सुखी।  
          -कोनिका वर्मा, +2 (वाणिज्य)

प्यारी-प्यारी शिक्षा
(शिक्षा दिवस पर द्वितीय स्थान प्राप्त कविता)
प्यारी प्यारी शिक्षा
ये है जादू की छड़ी।
इसे न कोई ले सकता है
न कोई चुरा सकता है,
ये ले जाती है हमें
ऊँचे पदों पर,
इसकी जड़ें हैं कड़वी,
लेकिन देती है फल मीठा,
ये भेदभाव नहीं करती
सबके लिये बराबर है,
सच पूछो तो ये पैसे से
नहीं खरीदी जा सकती है।
प्यारी प्यारी शिक्षा
ये है जादू की छड़ी।
          -वीना, नवम् श्रेणी

हिमाचली व्‍यंजन-
लीजिए मज़ा पचोले का
हिमाचल वासी हर त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। बहुत अच्छे-अच्छे व्यंजन बनाए जाते हैं, जिन्हें खाने का कुछ अपना ही मज़ा है। ऐसे ही लज़ीज पहाड़ी व्यंजनों में से एक है-पचोले। इसे पचोलटु या कचोलटू भी कहा जाता है। भुट्टे के कच्चे दोनों से बनाए जाने वाले कुछ व्यंजनों में से पचोले भी एक है। इसे बरसात के दिनों में बनाया जा सकता है। जब खेतों में मक्की की फसल लहलहा रही हो।
सामग्री: पचोले बनाने के लिए हमें कच्ची मक्की के दाने चाहिए। स्वाद के अनुसार नमक और थोड़ी-सी हल्दी।
बनाने की विधि: सबसे पहले मक्की के दूधिया दानों को पीस लीजिए। स्वाद के अनुसार नमक और साथ में थोड़ी हल्दी भी उसमें डालें। ध्यान रखें कि नमक सब्जी आदि के सामान्य स्वाद से कम ही होना चाहिए। फिर इन सब चीजों को मिला लीजिए। कुछ पत्तों को लाकर उसके ऊपर मक्की के बने पेस्ट को फैला दें।  गांव-गांव में होनेवाले बिहुल के पत्ते इस काम के लिए सर्वोत्तम हैं। एक-एक करके इन पत्तों को एक सिड्डू मेकर में रखते जाएं। सिड्डू मेकर को आंच पर रखें। 15 मिनट तक भाप में पकने के बाद पचोले तैयार हैं। सिड्डू मेकर का ढक्कन खोलते ही पचोलों की खुशबू हमें सराबोर कर देती है।
खाने की विधि: एक प्लेट में ताजा शुद्ध देसी घी लें और उसके साथ पचोले खाने का आनंद प्राप्त करें। इसे खीर या दही के साथ भी खाया जा सकता है।
-भावना, +1 (मानविकी)



English Section

 Our Education System Needs & Re-look?

Each year sees a thinning out of the old generation which stood for values in different walks of life including education and gave the country illustrious sons and daughters who made their mark in various spheres and brought laurels to the nation. Though 'Old Order Changes Yielding Place to New'  yet the moot question that often haunts the mind is whether this 'New Order' is filling the pre and post Gandhian era we see a steep decline in moral values for which our fore-fathers had stood and made great sacrifices. All around we find rampant corruption which has spread its tentacles to take into its fold each and every sphere of our life which is casting its shadow on the young minds who are prone to each and every repercussion of this malady. A pernicious rat-race is going on for a cut-throat competition to grab money by means fair or foul.
Schools, Colleges and Universities are turning out each year a large number of students who have been imparted only a regimental type of education which is shorn of the actual needs of the society and devoid  of aptitude-based education. The tragedy is further compounded by the parental attitude also who too want their wards to be money-spinning tools only. It is here where a great responsibility devolves on the teacher community to guide the students as to in which field they can excel. They, as Nation-Builders, owe it to the society not only to impart education of course-content but also to enable them to choose their destination in life without any out-side pressure being exerted on them against their option or will.
A seasoned teacher can and should play the role of a mentor so that they do not float and drift like a rudder-less ship in an unchartered sea. The students possess enormous amount of energy which needs timely direction and there is no reason why they cannot reach the pinnacle of glory bringing name to themselves, their family, the society at large and ultimately to the country in which they are born. If George Washington of America could go all the way from the 'Log-Cabin to the White-House'  and Dr. A.P.J.Abdul Kalam, despite penury, could make it to the 'Rashtrapati Bhawan' besides obtaining Himalayan heights as a top-ranking Scientist of the world, why our students can't achieve the desired targets enriching their own life as well as of the Society, given tenacity of purpose and unflagging courage to cross hurdles of poor pecuniary conditions too. Besides, India has to meet the challenges of the twenty-first Century boldly and squarely, our students have to be made alive to the present day needs on the fast changing scenario. The situation demands urgent attention of the eminent educationists to revitalise the whole system of Education by bringing about radical changes to make it more relevant and meaningful.
All said and done, now a word about the innovative spirit of the students of our school who have taken keen interest in contributing valuable articles to the school magazine this year. These articles are both imaginative and entertaining. They deserve rich encomiums for their spirited and thoughtful endeavors which are bound to serve them in good stead in their later lives. Bravo, young minds!  
                                                            - Kamal Chauhan, Lecturer in English


My Sweet Mom
We all believe that God is not visible. God is invisible and we all can't see the God. But as per my opinion God is very much visible in the image of mother just as my own.
My mother is my best friend. She gave me birth and life. She raised me up. She always shows me the right way to work. She helps me in my studies. In my childhood, she played with me and slept with me. She always encourages me to learn more and more new things. She always teaches me the lesson of 'Simple living and high thinking'. My mother told me that we should always respect our elders. My mother is my ideal.
I want to say only three words to my sweet and lovely mom
"I Love You"
I could never tell this to my mom.
That's why I sit alone and take a pen and paper and write my feeling about the relations of a mother and child. In nut shell, I want to say that "I love my mom too much". Please always be with me and support me. I love you mamma…….
-Konika Verma, +2 (Commerce)

Positive Attitude
Failure doesn't mean you are a failure
It means that you haven't succeeded yet.
Failure doesn't mean you have accomplished nothing
It means that you have learned something.
Failure doesn't mean that you don't have it
It means that you have in a different way.
Failure doesn't mean you are inferior
It means that you aren't perfect.
Failure doesn't mean you have wasted your life
It means that you must have reasons to start afresh.
Failure doesn't mean you'll never make it
It means that it will take a little longer.
Failure doesn't mean you should give up
It means that you must try harder.
Failure doesn't mean that God has abandoned you
It means that God has a better idea.
-Priti Kaushik, +2 (Commerce)

Who is a good  student
A         :           Always liked by teachers.
G         :           Greets everyone with a smile.
O                     Obedient to teachers and parents.
O         :           On time to school.
D         :           Dresses neatly and cleanly.
S          :           Studies with interest.
T         :           Treats everyone with respect.
U         :           Understands every lesson.
D         :           Does daily home work.
E          :           Eager to know many things.
N         :           Never misbehaves.
T         :           Talks less in class.
-Shivani, +1 (Medical)

Drug Addiction
Drug addiction refers to the habit of taking the substance that effects the nervous system. Some of the drugs are cocaine, heroin, opium, brown sugar, hashish etc. The people who are a drug addicts have them, regularly. Nowadays, especially the young boys of the town are victimized. They are badly intoxicated in drugs. Nowadays drug addiction is a major and serious-social problem. This problem is rapidly increasing especially in urban regions. The teenagers have been victimized by this problem. The boys of high schools and higher secondary schools are found to have been addicted to drugs. The percentage of a school girls who have been intoxicated in drugs is very low. That's why this is the major social problem among the teenagers.
There are some causes of drugs addiction. The children seem to be imitating the adults behavior. When the adults smoke, the children are lured and they start smoking. And smoking leads them to drug addiction. Some of the boys start taking drug because of being pessimistic. They are hopeless about their future. The people who are fed up with life do not want to live for a long time. They want to enjoy the life taking drugs for a few days. Some of the smugglers of drug provide the youths with drugs free of cost at the beginning. Their aim is to make the youths habitually intoxicated to drugs. When the youths become drug addicts, they go to the smugglers to buy the drugs. Similarly, Sadhus also take drugs. Some youths go to these Sadhus and learn to take drug from them. There are many adverse effects of drugs on the individuals and the society. They drug addicts are most affected. The regular use of the drugs makes the addicts mentally dull. They gradually become weaker and weaker. It also produces complete instability, fatigue and infertility. Some of them can be victimized of fatal diseases like AIDS and Hepatitis B. Drugs are very expensive. The drug addicts are led to crimes. They are even ready to kill others for money to buy drugs. They steal things of others. The drug addicts will be criminals in the society. They may even commit suicide in their extreme stage of drug addiction.
Drug addiction: The social problem can be reduced or solved in many ways. Firstly, the people should be taught  about the adverse effects of drugs. The youths should be cared properly. The drug addicts should be cured. The programs of rehabilitation and reformation have to be started and implemented. Drug addiction is a serious social problem.  Each of the parents should watch their children. Similarly, schools and colleges can play a vital role to solve this problem.                                  
-Shivani, +1 (Medical)


Our Nature
Nature is a beautiful creature. The tree, flowers, rivers, lakes are its features. Nature is a part of our health, but we use it to make our wealth. It's a usual logic. That nature creates in our mind beautiful magic.
Nature makes a simple land heaven we have to make it rainbow color of seven. Preserve the  nature in a serious way and give this world a golden ray.
-Geeta Devi, +1 (Non-Medical)

Education Makes One Humble-Vidyā Dadāti Vinayam

Sanskrit writers derived a lesson for life to be learnt from whatever they saw. Nature was their biggest teacher. Trees, flowers, rivers, mountains, clouds, animals and birds are  a few of the lengthy list from whom they saw goodness to learn from. Sometimes the lesson was negative, but most of the times they were positive. It is a great virtue one could learn from Sanskrit writers. They had said :
विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम् ।।
  vidya dadati vinayam vinayad yati patratam
  patratvad dhanam apnoti dhanad dharmam tatah sukham
vidya-the edcuation; dadati-gives; vinayam-humility; vinayat-from humility; yati-attains; patratam-qualification; patratvad-by good qualification; dhanam-the wealth; apnoti-acquires; dhanat-from wealth; dharmam-the religion; tatah-after that; sukham-happiness.
Education makes one humble, which gives one qualification. Being qualified, one attains wealth for performing religious acts, which leads to happiness.
Humility is the fruit of a good education. In fact, one cannot receive knowledge from a guru unless he submits himself  humbly with genuine questions and submissive service.  Even Lord Krishna studied under a guru, posed questions and performed menial service.  Questions should not be posed with a challenging spirit or with the intention of testing the caliber of the teacher. There should be intrinsic faith. In Bhagavad Gita (4.34) Lord Krishna recommends three things- pranipatena-pay obeisance; pariprasnena-ask questions; and sevaya-perform service. Thus, by surrendering his body, words, and mind respectively, one achieves complete humility. 
 Sometimes  devotees make a show of surrender  but inwardly  maintain the pride. Thus there is a subtle defiance on the part of the disciple  and will deprive him of the actual fruit of knowledge. Unless one serves the master with the proper mentality, whatever knowledge he has received may be misused.  Those who neglect to render service to their guru or those who study without proper guidance will become proud and will use their knowledge only to argue with others. It is said that learning in the guidance  of a bad man is like a sword in the hand of a mad man. The Lord says that a proud man does not reap the proper results of vidya (Bhag. 9.4.70).
-Devender Sharma
Editor in Chief

My Dear Mother
You gave us birth and life
And raised us
Without a fuss
Brought us up
Showing us
The wrong from right
Cooked the best food
We ever ate.

Dear mom you are
so much great
I remember the years
You used to hold me
Play with me.
And sleep with me
I always wanted to tell you
Just three words
That is 'I love you'

But I could never tell you
So I sit and write A poem just for you
And that is
Mom I Love you.
- Shivani, +1 (Medical)

Silence Speaks
Shhhh….. don't cry for the while.
mama knows you are hungry, just another mile.
I can see the tears of hunger in your eye.
But al your can do is try.
You know since the war broke out,
Fear and death follow us like a dark cloud.
In your silence I can feel your eyes question about where your father is,
But fighting the war he accepted death's dark kiss.
I know it is not fair on you to grow up without a dad.
And this feeling really makes me sad.
Who ever won the war, the loss was ours,
We were caught between two strong powers.
But life still goes on my child,
Today evil is free and death runs wild.
That's why we must flee quick from the land we once called our own,
And venture out into the world unknown.
-Dimple Sharma, +1 (Commerce)

You are the one I see
 You are the one I see,
When I am sad or when I am happy.
You are the one for me,
Whenever I choose an idol for me.
You are the one I see,
Who accepts all my pleas!

You are the one I see,
Like an angel in the vast blue sea.
You are the one I see,
in the colors of rainbow above me!
-Aruna, +2 (Commerce)

Life
Ask the poor, what is life?
They will say-
life is poverty and sadness.
Ask the rich, what is life?
They will say-
life is money and happiness.
Ask the beggar, what is life?
They will say-
life is only begging.
Ask the true lovers, what is life?
They will say-
life is love which never ends.
But I will say-
life is struggle and problem,
face it and solve it.

Storm
Why she lies so motionless
While her mind storms away
How she came to lie
so battered
With the taste of
ironic blood….
She fought not for her life.
But for her dignity
They tear it apart,
irrespective of her pleas……
with the thought of revenge,
she clings on to life….
She clings on to the tatters
to hide away her misery.
-Dimple Sharma, +1 (Commerce)



Science Section

Hope of a Successful Future
“Education is a mean to carve out a fine personality out of young, innocent and ignorant minds, as knowledge is power.”
-Francis Bacon
It is, therefore, necessary to provide the best of education in the best possible manner. Personality of a child developes first at home, next at school and later in the society.
A student is always in persuit of knowledge, school is the place that provides students the hope of a successful future, nurtures the dream of students not only to achieve the materialistic worldly things but to attain right human values, as a good person is definitely successful in making this world a better place to live in.
The motive of publishing this section of the school magazine, Him Nayani, is to make a common person understand the concept of science in a simplified manner contrary to common perception that science is difficult to understand.
Science is not only a stream to study but it makes our life comfortable to live. Science in a human life starts as he becomes aware of his surroundings. Science actually means observations which lead to knowledge and therefore, act according to it. It starts in the life of human being as he comes into existence.
India has a rich heritage of scientific knowledge. Zero and decimal system given by Aryabhatta without which any calculation wouldn’t have been possible. Our students have made a sincere effort in selecting the articles. Knowledge, success and human goodness is a message for readers.
-Kulbhushan Sharma
Lecturer in Mathematics

Ecological Imbalance
Causes and its effects: Ecology the theoretical concept of stability occurring when relative numbers of different organisms in the same eco system remain more or less constant.
Nature plays an important role in our day to day life. Earlier people used to worship nature, but today due to modernization and urbanization we have starting exploiting it in many ways. So environment has led to many problems: like global warming, pollution and depletion.
Causes of Ecological Imbalance: Pollution due to industrialization, fuel consumption, air conditioning equipments, deforestation, non plantation of sufficient number of plants, expansion of urban area. Due to pollution and smoke the ozone layer is depleted. It is thick layer and very effective in absorbing harmful ultra-violet rays given out by the sun. Ozone layer is also known as protective shield. The ozone layer protects us from its damaging effects. If there were no ozone, life on the earth would not be possible. Fossil fuels contain compounds of sulphur and nitrogen in addition to carbon. The combustion of fuels contributes significantly to atmospheric pollution. The burning of fossil fuel gives carbon dioxide. The gaseous carbon dioxide dissolves in water droplets to form weak acid, carbonic acid. The oxides of nitrogen and sulphur undergo many photochemical reactions in atmosphere and form Nitric acid and sulphuric acids. During rains, these acids fall to the earth with rain. This polluted rain is called acid rain. Human activities are releasing carbon monoxide in atmosphere. The main sources of air pollution of CO2 are the automobile engines and defective furnaces. The contamination of any part of the environment is called pollution and the substance which cause pollution are called pollutants. The pollutants can cause air pollution, water pollution or soil pollution. The pollutant can be solid, liquid or gaseous substances. The common examples of pollutants are aluminum pieces, iron, DDT, plastic materials, nuclear waste etc. Air is never found clean due to natural and man made pollution. Gases such as carbon monoxide, nitrogen oxides, sulphur oxides, hydrogen sulphide and many volatile organic compounds are continuously released into the atmosphere. Oxides of sulphur are probably the most harmful the common gaseous pollutants. Most of the sulphur dioxide in atmosphere originate through out the combustion of fossil fuels which contain some sulphur. When coal is burnt, sulphur is oxidized  to sulphur dioxide and is released into the atmosphere. Pollution of water originates from human activities. Through different paths, pollution reaches surface or around water. The major sources of water pollutants are domestic sewage and industrial wastage. Soil receive large quantities of hazardous wastes from different sources and gets polluted.
Some effects of ecological imbalance: CO is very toxic because it combines with haemoglobin in the blood and forms oxy-haemoglobin by reversible process. The harmful effects of inhaling increasing amount of carbon monoxide include reduction in awareness, dizziness, weak eye sight, headache and nervousness. It also effect leaf drop, leaf curling decrease in leaf size. The increasing concentration of carbon dioxide may affect the atmosphere, causing undesirable change in climate.   
The increasing concentration of carbon dioxide is due to human activities. Though it is not  toxic, but the excess of it can lead to increase in earth’s temperature. This effect is known as greenhouse effect. Sulphur dioxide and its compounds such as sulphur trioxide, sulphuric acid are dangerous air pollutants. Sulphur dioxide effects respiratory tract producing nose, eye and lung irritation. Atmospheric sulphur dioxide is harmful for plants. It damages vegetables, crops and effect plant growth and nutrient quality of plant products. Acid rain is very damaging. It is toxic to vegetation and human life. It damages buildings and sculptural materials of marbles, limestone etc. Depletion of ozone layer poses serious threat to mankind. It results in skin cancer due to exposure to sun’s ultra violet rays. Ultra violet rays may damage immune system which may lead to increased viral infections.
To save our environment, we all as human beings have to think seriously. If we follow some basic steps as an individual to keep our environment pollution free, we can contribute significantly towards a better quality of our environment and human life:-
i)         Always set up a compost in your garden, use it to produce manure for your plants. This will reduce the use of fertilizers.
ii)        Take care that all newspapers, glass, aluminium and other items are recycled.
iii)       Always use a cloth bag instead of a plastic carry bags when you buy vegetables, fruits, groceries or any other item.
“Always remember, environmental protection begins with us.”
-Shruti Thakur, +1 (Non-Medical)

Science Experiment
Invisible ink with lemon juice

What you’ll need:
  Half a lemon
  Water
  Spoon
  Bowl
  Cotton bud
  White paper
  Lamp or other light bulb
Instructions:
  Squeeze some lemon juice into the bowl and add few drops of water
  Mix the water and lemon juice with the spoon
Dip the cotton bud into the mixture and write a message or text onto the white  paper.
  Wait for the juice to dry so it becomes completely invisible
When you are ready to read your message (secret message) or show it to some one else, heat the paper by holding it close to a light bulb.
What’s happening?
Lemon juice is an organic substance that oxidizes and turns brown when heated. Diluting the lemon juice in water makes it very hard to notice when you apply it paper, no one will be aware of its presence until it is heated and the secret message is revealed. Other substances which work in the same way include arrange juice, honey, onion juice, vinegars and wine. Invisible ink can also be made using chemical reactions or by viewing certain liquids under ultraviolet (UV) light.
-Konika Verma, +2 (Commerce)

बेहद जरूरी है आयोडीन
शरीर में आयोडीन की कमी के कारण इस समय देशभर में करोड़ों लोग किसी-न-किसी तरह के शारीरिक और मानसिक रूप से शिकार हो रहे हैं और शारीरिक विकार के शिकार भी हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 150 करोड़ लोगों को आयोडीन की कमी से शारीरिक और मानसिक बीमारी हो जाने का खतरा है, वहीं हमारे देश में 20 करोड़ से भी ज्यादा लोगों पर यह खतरा मंडराता है।
गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कमी का बुरा प्रभाव देखा जाता है। इससे गर्भपात, शिशु के जन्म से पहले मृत्यु या फिर शिशु में गूंगापन, बहरापन, भैंगापन, स्नायुतंत्र और घैंघा जैसे रोग का प्रभाव आ सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार एक छोटे बच्चे के समुचित विकास के लिए 90 माइक्रो ग्राम, बड़े बच्चे के लिए 120 माइक्रोग्राम और व्यस्क व्यक्ति के लिये 150 माइक्रोग्राम आयोडीन प्रतिदिन लेना आवश्यक है। गर्भवती महिला को रोजाना 200 माइक्रो ग्राम आयोडीन लेना बेहद जरूरी है। भोजन में आयोडीन नमक का इस्तेमाल करें। इसके अलावा गाय के दूध या दूध से बने अन्य खाद्य पदार्थ, सौंफ, नॉन रोटी, हरी पत्तेदार सब्जियों और फलों में आयोडीन मौजूद होता है। पालक व स्ट्राबेरी आयोडीन के अच्छे स्त्रोतों में से एक है। अगर आप शाकाहारी नहीं है तो उबले अंडे और सी-फूड  का सेवन कर सकते हैं।  
-शिवानी, +1 (मेडिकल)

तम्बाकू के स्वास्थ्य  पर दुष्प्रभाव
आजीवन रहने वाली बीमारियां जैसे कैंसर, फेफड़ों के रोग, हृदय के रोग का मुख्य कारण तम्बाकू का सेवन है । बहुत से देशों में तो तम्बाकू के प्रचार पर भी रोक है । तम्बाकू के उत्पादों में 4000 से भी अधिक घातक रसायन होते हैं और इसमें तम्बाकू की पात्तियों का प्रयोग होता है। ये सभी शरीर के विभिन्न अंगों को किसी न किसी रूप में नुकसान पहुँचाते हैं। समय रहते बचाव नहीं करने पर इसका नतीजा घातक बीमारी के रूप में सामने आ सकता है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च के आँकड़ों के अनुसार भारत में हर साल तंबाकू की वजह से दस लाख से अधिक लोगों की मौत होती है।
तम्बाकू के स्वास्थ्य  पर पड़ने वाले कुछ प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं-
निकोटिन शरीर के तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है। इसके प्रभाव से दिल की धड़कन और रक्तचाप में भी वृद्धि हो जाती है। इस जहरीले पदार्थ से शरीर की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। तम्बाकू फार्मेल्डिहाइड, आर्सेनिक सायनाइड, बेंजोपायरीन सहित कई रसायनों का मिश्रण होता है।
कार्बन मोनोऑक्साइड रक्त में पाए जाने वाले हीमोग्लोबिन में ऑक्सीजन की तुलना में अधिक आसानी से घुल जाता है। इसके कारण रक्त में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है।
धमनियों में कोलेस्ट्रॉल और अन्य वसा का जमाव होने के कारण   धमनियों की दीवारें धीरे-धीरे मोटी होकर बंद हो जाती हैं। इसका परिणाम आकस्मिक मौत के रूप में सामने आता है।
महिलाओं में भी धूम्रपान की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। इससे उन्हें कैंसर, गर्भपात, समय पूर्व प्रसव, गर्भस्थ षिशु पर प्रतिकूल प्रभाव आदि का खतरा रहता है। धूम्रपान करने वाली महिलाओं को फेफड़े, गले और मुंह के कैंसर का खतरा अधिक होता है ।              
-भावना, +1 (मेडिकल)

विज्ञान और अध्यात्म में संबंध
हमारे समक्ष जो विश्‍व ब्रह्माण्ड है, वह मूलतः दो सत्ताओं से मिलकर बना है- एक जड़ व दूसरा चेतन। जड़ सत्ता अर्थात् पदार्थ का अध्ययन विज्ञान का विषय है जबकि चेतन सत्ता, आत्मा-परमात्मा, का अध्ययन अध्यात्म का विषय है। अतः इस ब्रह्माण्ड को पूरे तौर से समझने के लिए हमें इन दोनों ही सत्ताओं को ध्यान में रखना है।
भारतवर्ष में अध्यात्म और विज्ञान का सदा से समन्वय रहा है। वेद एवं वैदिक वांग्मय विज्ञान और   अध्यात्म को साथ-साथ लेकर चलते हैं, फिर चाहे आयुर्वेद हो अथवा वास्तु। पश्चिमी में भी एक लम्बे अर्से तक विज्ञान एवं अध्यात्म साथ-साथ रहे। प्रत्येक वैज्ञानिक ग्रन्थ में परमात्मा की चर्चा पाई जाती थी। सर आइजेक न्यूटन ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रिन्सपियामें परमात्मा की चर्चा करते हुए लिखा है कि परमात्मा ने इस ब्रह्माण्ड की रचना की और इसे एक संवेग प्रदान किया, जिसके कारण वह गतिशील है। उन्होंने यह भी लिखा कि ब्रह्माण्डरूपी नाटक के मंच पर जब कोई विकष्ति पैदा होती है, तो परमात्मा स्वयं उसे ठीक करता है। यह भाव कुछ इसी तरह का है जैसा की गीता में कहा गया है-
‘‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
अध्यात्म और धर्म के बीच संबंधों की उपेक्षा का पहला उदाहरण फ्रांस में मिलता है जब वहां के प्रख्यात गणितज्ञ पियरे साइमन डी लाप्लास जो की सम्राट नेपोलियन के एक वैज्ञानिक सलाहकार थे, ने एक ग्रंथ लिखा जिसे पढ़ने के बाद सम्राट ने लाप्लास से कहा कि आपने आकाशीय पिण्डों पर इतना विशाल ग्रन्थ लिखा है किन्तु इसमें एक बार भी परमात्मा की चर्चा नहीं की है। लाप्लास का उत्तर था, ‘श्रीमन् मुझे इस परिकल्पना की कोई आवश्‍यकता महसूस नहीं हुई।
विज्ञान और अध्यात्म दोनों के लिए यह एक ऐसी घटना थी, जिसने उनके बीच एक दीवार खड़ी कर दी है। जहां एक ओर इससे पूर्व दोनों एक दूसरे के पूरक के रूप में कार्य कर रहे थे, अब एक दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी हो गए हैं। परिणाम यह हुआ है कि विज्ञान पर अध्यात्म का अंकुश नहीं रहा और वह स्वत्रंत रूप से इस प्रकार कार्य करने लगा कि नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीन हो गया है। दूसरी ओर विज्ञान से पष्थक होने पर अध्यात्म अवैज्ञानिक मार्ग पर चल पड़ा है और उसमें रूढ़िवादिता एवं अंधविष्वास का बाहुल्य हो गया है। स्वाभाविक है कि समाज पर इसका कुप्रभाव पड़ा है। आध्यात्मिक लोग विज्ञान के उपकरणो- जैसे लाउडस्पीकर, मोटर कार, रेलगाड़ी, वायुयान आदि का उपयोग तो करते हैं किन्तु विज्ञान को जी भरकर कोसते हैं। उनके अनुसार समाज के पतन के लिए विज्ञान ही उत्तरदायी है। दूसरी ओर वैज्ञानिक जगत के लोगों ने अध्यात्म को पोंगा पन्थी एवं ढोंग करार देते हैं। यह अत्यन्त ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।  ऐसे में हमें आइन्सटाइन के इस कथन पर जरूर ध्यान देना चाहिये-धर्म के बिना विज्ञान अन्धा है और विज्ञान के बिना धर्म लगड़ा।
इस ब्रह्माण्ड को पूरे तौर से समझने के लिए हमें इन दोनों ही सत्ताओं को ध्यान में रखना होगा। सामान्यतः किसी भी विषय का अध्ययन न तो केवल भौतिक है और न ही केवल आध्यात्मिक। सत्य की खोज के लिए हमें, विज्ञान एवं अध्यात्म दोनों पर विचार करना होगा और यही वैज्ञानिक आध्यात्मवाद का मूल है।           
-देवेन्द्र शर्मा, प्रधान संपादक

Greatest Mathematicians
(1)      Carl Fredrich Gauss: Gauss was the great scientist. He was very intelligent. His great intelligence was demonstrated at a young age. when he was in school, his teachers gave the class a task that he thought would take a long time to complete. His task was to sum the first 100 numbers. Gauss completed the task in very short time, much later, when teacher checked the answers. Gauss had the correct answer. He summed the first hundred numbers not by addition but by multiplication. He found these are 50 pairs of 101 and 50 x 101 = 5050. Gauss earned a scholarship in college. He independently discovered the several theorems, such as in 1796, he was able to show that any regular polygon each of whose odd factors are distinct Feruat Primes can be constructed by rules and compass alone he was the first to prove fundamental theorem of Algebra. In 1809 Gauss published a major work about the motion of bodies.
(2)      Albert Einstein: As we know that Albert Einstein made numerous contribution to mathematics and physics most notably. An earlier contribution was a mathematical formula that explained that the visible motions of particles suspended in liquids was due to the invisible motion of the water molecules. Arguably his most famous contribution was the formula E = mc2. This is the formula used to calculate the amount of energy a given mass is equal to. The formula says that this amount of energy can be got by multiplying mass time the square of the speed of light.
(3)      Issac Newton: Issac Newton is often regarded as one of the most important mathematicians in English history. He made his greatest contribution in a relatively short period of time. From 1664 to 1666 during this span of 2 years he invented the calculus, worked upon spectrums and discovered the law of universal gravitation. He wrote “mathematical principal of natural philosophy” which discussed in three laws of motions. The universal “Arithmetic” which advanced the theory of equation. He also wrote many papers on calculus, analytical geometry optics and curves.
(4)      Pythagoras: Pythagoras was a philosopher and mathematician who made numerous contribution to field of Geomatery . The difference between even and odd numbers is attributed to Pythagorean teaching as are prime number. Probably the most popular aspects of Pythagoras’s contribution to mathematics is the Pythagorean theorem. This deal with right angle triangles and reads A2 + B2 = C2. C is the length of the side opposite the right angle. A and B can be either of the two sides.
(5)      Julius Plucher: Julius Plucher was born in Germany and made important contribution to geometry during the early and mid-1800s. First he invented line geometry. Prior to that geometry only consisted of the study of individual points. He also invented enumerative geometry concerned counting the number of solution to geometric problem. Later in his career he also contributed to theories surrounding geometries of more than three dimensions.
                                                                        - Manoj Kaushik, 10+2 (Non Medical)

Biotechnology and Its Applications

Biotechnology is a group of technologies that share two common characteristics - working with living cells and their molecules and having a wide range of practical uses that can improve our lives. As such, it has been used to bake bread, brew alcoholic beverages, and breed food crops or domestic animals since the beginning of records history .
The characteristics of a living organism are determined by some physical units called as genes that are arranged on chromosomes found inside the nucleus of a cell. A gene is made of molecules of deoxyribonucleic acid (DNA), which is called as the Genetic Blue Print of each living cell. The characteristics and structure of DNA was studied by Rosalind Franklin, Francis Crick, James Watson and Maurice Wilkins (1953), for which Crick, Watson and Wilkins were awarded Nobel Prize for the year 1962
Later, Dr. H.G. Khorana, R.H. Holley and M.W. Nirenberg were awarded Nobel Prize for the year 1968, for their pioneering works related to the synthesis of gene. These studies of gene and DNA formed the basis if development of bio- technological studies in India and abroad. The presentation of double helical model of DNA and discoveries pertaining to gene, mark the beginning of the modern era of Bio- technology.
During 1950s, scientists cloned frogs and by 1980s they cloned mice. During 1996, Ian Wilmot and his team of researchers achieved success for the first time in cloning an adult sheep. They named the clone as Dolly. Scientists at Texas A & M University in College Station produced the first cloned cat on Dec. 22, 2001. It is hoped that scientists may one day become successful in cloning extinct animals also.
The pioneering achievement in the field of bio- technological development was the manipulation of bacteria to produce Human Protein in 1977. By using genetically engineered bacteria, scientists became successful in producing Human Insulin in 1978 and within a period of 5 years the Human Insulin became the first biopharmaceutical product in the market to control Diabetes. Through the techniques of Hybridization, Indian Scientist Dr. M.S.Swaminathan (1967) initiated and developed technologies for increasing food production in India.
In agriculture, Genetically Modified(GM)crops are being produced through genetic engineering. The introduction of bio-pesticides can control pests through natural ways without contaminating the natural environment. Bio- technology is currently employed in the synthesis of biodegradable plastic. Today Scientists have the ability to insert genes that give biological defense against diseases and insects.
Thus bio- technology has scope in the fields of Agriculture and Animal Husbandry, Molecular Medicine, Forensic Science, Microbial Genetics, Environmental Sciences etc.
- Manoj Kaushik, +2 (Non Medical)

Know Your  Flora -
Acorus calamus (Vacha)
The famous brain tonic Acorus calamus, the sweetflag root is known as Vacha or Baryan. It can be seen everywhere near riverbeds, water courses and lakes upto 2600 m asl. The Beas valley in Kullu and Pabbar valley in Rohru are main collection areas of its roots in Himachal Pradesh.
It is a perennial herb with  branched rhizomes, creeping in mud and have stout joints with large leaf scars. The rhizomes are smooth, pinkish or pale green; white and spongy within. They are aromatic. These are used after drying.  Acorus calamus flowers in April-May.
The dry rhizomes contain 1.5-3.5 percent of a yellow bitter aromatic volatile oil asarone. It also contains α-pinene, d camphene, calamene, calamenone, calamenone and alcohols. A  glycocide, Acorin, is also present in roots.
It is one of the trinity of ‘Bana-Basooti-Barayan’ which are known as life giving herbs in north Indian folks. Traditionally it is used  as anti-aging, anti-inflammatory, antispasmodic, tranquilizer and digestive. It is used to cure anxiety, irregular heartbeat, bronchitis, cancer, cognitive improvement (old age), colic, cough, depression, drug addiction of nicotine, epilepsy, remittent fever, general health maintenance, hysteria, indigestion, inflammation, memory loss, mental disorders, sedation, stress reduction, ulcer, vitality problems.
Its powdered roots are used as vermifuge. It is also useful in bronchitis and remittent fever. It is simple and useful remedy for flatulence, colic and dyspepsia.
Its roots are used in preparation of perfumes and hair powders. The leaves and roots are also used to control household pests and insects attacking field crops, stored grains and woollens. Fresh rhizomes are inhaled in common colds as anti-allergic. Its small pieces if chewed empty stomach help in curing asthma. 
Acorus calamus, the Vacha is also used as brain tonic, alongwith  Brahmi and Shankhpushpi, you have seen its compositions like Shankhpushpi syrup in market. 
It is a main ingredient of many ayurvedic preparations like Saraswat Churna, Yograja Guggulu, Sanjeevani vati, Chander Prabha vati, Unmad Gajankusha Ras and Maha Shankha vati.
-Devender Sharma, Editor in Chief

            
           पहाड़ी अनुभाग


पहाड़ी भाषा
माखै ए बड़ि खुशी रि बात असअ जै माँ हिमनयनी रै पहाड़ी अनुभागो रा सम्पादन करनि रा मोका म्हिटा। एथि दअ जादै खुशी माँ ए असअ जै छोटु-छोटियै आफि बणाइ रो अलग अलग तरा री रचना छापणि कै दिती। इनो रचना पढ़ि रो आँव ए तो पाक्कै तौरअ पाँदे बोलि सकुअ जै काँडै रै मुँह पइलै इ पइनै ओअ, अरअ का पता जै इनो इ छोटु बिचो दअ काल कोई इषा लेखक या कवि निकलि जाजु म्हारि प्यारी पहाड़ी भाषा कै संजीवनि देइ देअ।
पहाड़ी भाषा साथि एक मुष्किल ए असअ जै एनि रि आपणि कोई लिपि निं आँथि। ए बि ओइ सको जै एसअ रै शब्द एतणै ज्यादा ना होअ जु इंदि पढ़ाइ बगैरा होइ सको। एक मुष्किल ए बि असअ जै आज बी हर 5 किलोमीटरअ दे बाद ऐथी बोली बदली जाअ। पर इयं बातअ दअ कुण मना करि सकअ जै पहाड़ी आखर म्हारि माअ असअ। अरअ जै माअ कदेखण बि होअ तबै बि असअ तअ से म्हारि मा इ अ। से तअ हामअ तेतणि इ पैरि लागअ। तअ तबै माइ समान पहाड़ी भाषा बोलदै हामअ शर्म किशि?
आज भौत सारै नौजवान कामकाजअ रे सिलसिलै दे आपणे घरअ-गाँवो दअ बाहर रहअ, जनिए तिनरै छोटु पहाड़ी बोली बोलणि रअ शिखणि रा कम मोका बणअ। आजकालअ रै नौजवान अंग्रेजी रअ हिन्दी बोलणि दि शान समझअ। पहाड़ी बोलदै इशै शर्मुअ जिशै कोई गलत काम करदै लागि रवै होअ। सच बताउ- बुरु ना मानै- पहाड़ि म्हारि माअ, हिन्दी म्हारि मौंसि रअ ए अंग्रेजि इशिआँटि असअ जु जबरिए घरअ दि आइ गोइ अरअ एबै पोरि टालुदि इ नीं।
पहाड़ि म्हारि संस्कष्ति असअ, पहाड़ि म्हारि पहचान असअ, पहाड़ि म्हारि धरोहर असो जु हामअ सम्हालि रअ राखणि अ, अरअ आवणि आळि पीढ़ि कै ज्यादा विकसित करि रअ सौंपणिअ।
आखरअ दु आँव इशड़ु इ बोलणु चाँउ:
सबि दअ मेरि ए फरयाद।
पहाड़ी भाषा कै करो आबाद।
-कल्पना परमार
प्रवक्ता-इतिहास

पेपर पहाड़ि रा
टैम: जितना मर्जी
नम्बर: जो तारी मर्जी
नोटः 1. हर कोई नकल मारी सको।
2.   आपणी दादी, नानी रो मासी री सलाह भी लेई सको।
3.   जसरे आपणे दोस्ता दे पुछणा तेसके मिर्चा रा धूआं देणा।
4.  गाईड और नोट्स आपणे सुपरिंटैंडेन्टा दे मांगी सको।
प्रश्न पैला: एनीरा सरलार्थ करी रो लिखो-
कल मरे सो आज, आज मरे सो अब
लकड़ी महंगी ओणे लग रइ, तबै मरना कब?’
प्रश्न दूजा: प्रस्ताव लिखणा-
1.   दादा दादी री आखी देखी लड़ाई
2.   रोज-रोज पढ़ने री समस्या रा का हल असो।
3.   ऐस साल तुमे कितनी क्लासअ अटेन्ड की।
प्रश्न तीजा: आपणे मना री भावना लिखो-
1.   जब तुमारी कोई मैडम स्कूला के नी आओ तो तुमे कितने खुश ओअ।
प्रश्न चौथा: आपणे मुख्यामंत्री के पत्र लिखो के मारे सोलण माए मच्छर बड़े बारी ओई गोए, तुमा दे अनुरोध असो के कोई इशा प्रोडक्ट बणवाओ जो सोलणी रे सारे मच्छर गायब करा दो, तबेई मारी सबी री रक्षा ओई सको।
प्रश्न पांजवा: ऐस पहेली रा उत्तर असौ-
     आपी त माठी जेइ चुंडका लाम्बा
नोटः जब तुमे ऐ पर्चा हल करि ललै तबै उत्तर पुस्तिका  आपणै सुपरीडैन्टा रे मुण्डा पांदे फैंकि देअ।
-कोनिका वर्मा, +2 (वाणिज्य)

डगैळी रा त्योहार
डगैळी गांव दे मनाई जाणे वाला एक प्रसिद्ध प्राचीन त्योहार असो। ऐ रक्षा-बंधनअ रै 10-15 दिनो बाद आव। ऐस दिन सारे गांव द थोड़ा-थोड़ा घिउ कठा करि के गांव रे इष्ट देवा रे मंदिरअ दि पूजा करी जावों। ऐ पूजा सिर्फ एक आदमी करो और जो पूजा माए द घिउ बचों से घीउ पूजा करने वाले के कले खाणा पड़ो। ऐस दिन गांव रे माँछ कई तरहा री तैयारी करो और आपणे-आपणे घरै धिंधड़े बणाओं। ऐ धिंधड़े अरबी रे पाते रे बणों। ऐस दिन गांव रे माँछों के तिनअ रै पंडित सरसों रे दाणे देओ। गांव रे माँछ तेनी दाणे के आपणे हर खेचअ रअ घरअ रै हर कमरे दै पाअ अरअ पशु रे ओबरे दै भी पाओं। और तिबरे और भेखलै रै पाते हर दरवाजे दै लअ। ऐ गांव री परंपरा भी मानी जाओ। ईशा करि रअ गांव रे माँछ आपणी सुरक्षा भी मानो। धिंधड़े बैळै चाकू साय काटे जाओं। और डागि रै नाक-कान तेस बहाने काटे जाओ। ईशा विश्वास असअ कि डगैळी के डागी नाचअ अरअ कसी के भी नकशाण पहुंचाइ सकअ ईशा मानी जाओ कि तिंबरै और भेखले पांदै डागी हमला नीं करि सकदी।
              -गिरिजा ठाकुर, +2( मानविकी)

रखौड़ी
मेरे दादा जी रा मानणा असौ जै जो हामै हाथअ दी ऐ रखौड़ी पैनू ऐ म्हारि रक्षा करअ जब डगैळी आअ तो तिनरि छाया हामअ पांदै ना पड़अ तभी हामै ए बानू। ये रखौड़ी हामअ कै पण्डित दे जाओं जबै डगेळी ओ तअ म्हारै घरअ दि बाड़ लाइ जाअ जो हामअ पांदै छाया न पड़अ। म्हारे घरै सारे किनारे शेरों खिंडी जाअ। तिम्बरै र् भेखलै रि एक-एक डाली दरवाजे और खिड़की पांदै लाई अ। अरअ तेस धैड़ै कसरा  बि छुआ हुन्दा नहीं खांदै। म्हारै घरअ दु जो धान कुटणै रु उखळ औ से बि राती बांयडका नीं राखदै। म्हारै बुजुर्गो रा मानणा असौ कि जो डाग और डागी होअ से राति करोलों रै टिब्बे  पांदे नाचअ। डगैळी आळै दिनअ हामें धिंधड़े बनाऊ और तेनि दरवाजे पांदै काटू। म्हारे बुजुर्ग बोलो कि जे धिंधड़े दरवाजे पांदै काटी डगेली पोरी काटुओं तबै से दवारअ दअ भीतरी नीं आवंदी। म्हारै गांव दि इशि रिवाज असअ कि राति बांयडकै नीं निकलने देंदे। अगर बांयडै निकळि जाई तो छाया पड़ि जअ। तअ तिनीरा इलाज पण्डित या डाऊ दअ करावणा पड़अ। जबै हामैं राति सुति जाऊ तो हामैं  घरअ दु अरअ बिस्तरअ दु  शेरअ फैंकू । म्हारै बुजुर्ग बोल्या करअ कि ए रवाज तुसअ ईशी निभाऊणी पड़नी।    
                        -रीना, दसवीं

धिंधड़े
सामग्री: गागुटी रे पाच (20), बेसन या कुकड़ी रा आटा (250 ग्राम), लूण जितना तुसे खाई सको (स्वादानुसार), पिपड़ी, हल्जे,   धणियां, मैथी, प्याज, लहसुन, जीरा, तेल एक कौली।
बणावणे रा ढंग: सभ्बी दे पहले तुसे गागुटी रे पाच धोई लो। तबे बेसन या कुकड़ी रा आटा लो। तिंदा लूण, पिपळी, हलजे, जीरा, धणियां, मेथी जिशे मसाले पाई देयो। तिंदा पाणि पाए रो बढ़िया करि रो मिलाई देयो। तबे साफ गागुटी रे पाचअ खे उटका कर तिंदा बेसणअ रा लेप लगाई देयो। पांच-छः पाचअ खे इशा ही लेप लगाई रो तेनिखे लपेटि रो बांध देयो। तबे एक सिडू मेकरा पाएं धिंधड़े पकावणे खे राख देयो। आग थोड़ी कम कर रो 10-15 मिनटा तक पकाओ। तबे तेनिखे ठण्डा होणे खे राखो। तबे काट रो तेनी रे माठे-माठे पीस बणावणे।
तबे कड़ाई माए तेल पाइरो तींदा, धणिया, पिपड़ी, प्याज, लहसुन पाओ। तेनीखे बढ़िया भूरे रंगा रा होणे देयो। तबे तिंदे धिंधड़े पाओ। बस तबे ऐ खाणे के तैयार असो।
धिंधड़े बरसाता माए खाए जाओ। जिशी रिमझिम बरखा बरसौ। तेनी माए धिंधड़े खाणे रा कुछ अपणा ही मजा असौ। ऐनी खे घियु, दहीं, छा, मक्खन सेई भी खाई सको।
-भावना, +1 (मानविकी)

आज काला रे नेता रा हाल
एकी दिन रि बात
आंऊ देखदि लागि इयी दूरदर्शन
तेति माए लागी रोआ थिया लोकसभा रा सीधा प्रसारण
तेति कुछ देरा बाद चालने लागे
लात मुक्कै रअ चप्पल
देशों रा ए हाल देखो
आऊ होइ बडिी निराश
जब नेता मांगअ रिशवत
तेति ताई राखदे सबि दअ वास्ता
कुछ देरा बाद सभा ओई बरखास्त
आज कालअ रे नेता रा करना नी विश्वास
इनरा बताइ देअ सिर्फ नाम
ए नेता असअ सारी दुनियां दे बदनाम
आजकाला रे नेता रा बुरा हाल।
-ज्योति ठाकुर, +1 (मानविकी)

चुने हुन्दे फूल
जीतणा चाओं तो - तृष्णा के जीतो।
मारणा चाओं तो - बुरी आदतों मारो।
जपणा चाओं तो - मीठे शब्द जपो।
देखणा चाओं तो - आपी के देखो।
शुणना चाओ तो -  दुखी रि पुकार शुणो।
छाडना चाओ तो - अभिमान छाड़ो।
पीणा चाओ त - रोश पीओ।          
खाणा चाओ त -      निष्ठुरता के खाओ।
लणा चाओ तो -      आशीर्वाद लौ।            
बांडणा चाओ तो -    प्यार बांटो।
              -अरुणा, +2 (वाणिज्य)

बुझाइणीं
1.   टेडि मेडि लकड़ी, तिन्दा भरा रस।
     जु बताउला बुझाइण त रपइए देणे दश।।
2.   वार छलाका पार छलाका,
     बीच नदी दा जमटू पाका।
3.   वार धुआं, पार मुआ।
4.   ना सांस ना मांस, बात बोलो तो खास।
5.   दिनो के सूतो राते के रोवो
     जेतना रोवो तेतना खाओ।
6.   धारो पांदै मेरी सोने रि नाथ।
     ओरि खिंचू, पोरि पंदरा हाथ।
              - सोनिका, +1 (मानविकी)
उत्तरः 1 जलेबी, 2 माखण, 3. बन्दुक 4.रेडियो 5. घराट, 6. चांद

मेरी काली मां रा मन्दिर
मेरी काली माता रा मंदिर असौ बड़ा प्यारा।
देखणै कै सभी देशों दा न्यारा।
मेरी काली माता रा मंदिर असौ बड़ा प्यारा।
सबी दा ऊंचा ऐती रा टिब्बा
पार सामने चुड़ि रि धारा
मेरी काली माता रा मंदिर असअ बड़ा प्यारा।
घणे-घणे जंगल ऐति असौ बड़े भारि,
मयरू, बान, चील, केलोई रा शोभना रा नजारा।
मेरी काली माता रा मंदिर असअ बड़ा प्यारा।
देखणै के सभी द् न्यारा।
मेरी काली माता रा मंदिर असौ बड़ा प्यारा।
-तेजिन्द्र ठाकुर, +2 (मानविकी)

तिरंगा
जण्डा ऊंचा रौ मारा
बड़अ दुनिया दा बाईचारा
तीऊ रंगों रा मेल तिरंगा
जिशे सरस्वती, यमुना रअ गंगा
आओ मिली रो इनी री शान बढ़ाओं
इनी री खातिर शीश कटाओं
किशा बढ़िया तिरंगा प्यारा
इनी रे इजति माए खड़ा जग सारा
इनी रा तुमे मान बढ़ाओ
आतंकवादअ के जड़ि द् मटाओं
करो हिफाजत इनी री हम-तुम
नील गगन माए लहराओं हरदम। 
-अरुणा, +2 (वाणिज्य)

माता-पिता र बच्चे रा रिशता
माता-पिता होअ भगवान् समान
कबै न करौ इनअ रा अपमान
नैई मांगदे से तुसअ दअ धन दौलत
से चाओ ताह्रा कल्याण।
रोज करो तिनरा आदर
आमा-बापू या मौम-डैड बोलो या मदर-फादर
कबै न करै इनअ रा निरादर।
जिनै दिया तुमअ कै जनम
करअ जो ताह्रा लालन-पालन
मानौ तिना रा तुसै एहसान।
दुनियां दे न जाओ तुसै जगह-जगह तिर्थ-स्थान
जे करो माँ बाव रि सेवा तो ऐथी ओइ जावो चारो धाम
देखो होअ न से कवै दुखी, सदा राखअ तुसै इनअ सुखी
बुढ़ापै दा बि देणा इनअ सहारा
तबै इ सफल होणा जीवन ताह्रा।
-नरेश कुमार, +2 (वाणिज्य)

हसणि रा शटराला
रामू रा एक पड़ोसी था तेसरा नाओ था शिबु। शिबु रै एक खाडु रो दो बल्द थे। खाडु रा नांओ था देखियारो बल्दअ रै नांओ थै पांवणा रअ डिंगा। हर रोज शिबु आपणे दोई बोल्दअ के चारणे के घाइणि कै लय जा था। दुनै बल्द फिरे आफी पाछु आओ थे।
एकी बेरै शिबु रे ठें एक अन्जाणा मेहमान आया। शिबुए से पांवणा कमरे दा बठाइ दिया रअ आपि बल्दो लेंवदा   डेवा। आदड़ी बाटो दा तेस एक बल्द मिला। जसरा नाओं था पांवणा। शिबुए से बल्द घरो के लेया रो आपणी घरअ आळी के बोला जे ऐसा पांवणै के ऊबे बांन। आंव डेवा डींगेके। शिबु रे ठें जो पांवणा आए रोआ था। तिणिए सांचु जे आऊं तो बांनि लोआ और आपी डेवा डिंगेके।
डरि रअ से पांवणा तेथि लुकी गोआ खाडू रे बाड़े दा। जबै से शिबु बल्दअ लइ रअ पाछु पोंचा तो तिणिये आपणी घरअ अळी कै बोलु जै खाडू कै पिन्नी नीं देइ राखी? जवाब मिला जे ना। शिबुए बल्द बांना रअ पीन्नी देंदा खाडू रे बाड़े के डेवा। बाड़े दु न्हैरु थु। शिबु खाडू रा नांव बोलदा लागा जे आ देखिया-देखिया..........आ। तिन्दा जो पांवणा लुकी रोआ था, तिणिए जाणु जै ए तो इन्दा बि देखि गोबा। से पांवणा बाईंडा आया। रअ रामू रै आगे के डेवा। तिणियै रामू रै ठें सारी हिस्ट्री शुणाई । जे मुखे शिबुए इशि इशि प्लान कीं। तबै रामू हसा रअ बोला जे पांवणारअ डिंगा शिबु रे बल्दअ रै नांव असअ रअ देखियातेसरे खाडू रा।
-हर्षिता शर्मादसवीं

शराब
छाडि देअ माँछअ पिणि शराब।
बाटअ दी ठोकरअ खाअ हजार,
थू-थु माँछ करअ हजार,
लुटअ ना आपणु घर-बार-
बेजत होणि कै करअ ना घरि खराब।
     छाडि देअ माँछअ पिणि....
पीरअ गाँदअ रि नाळी दै सुतै,
मुँअ री उलटी चाटअ लै कुतै,
टालै केथुए गुए रअ मुचै,
खड़ै उलटी बेठै पेट खराब।
              छाडि देअ माँछअ पिणि....
रँहदा निं मा-बेटी रा ख्याल,
माँछअ रि खाल पशु रा ब्वहार,
घर बणि जा नरक द्वार,
होअ बमारी ला-अलाज।
              छाडि देअ माँछअ पिणि....
              -देवेन्द्र शर्मा, प्रधान संपादक

सच्ची दोस्ति
ऐसअ दुनिया दि सच्ची दोस्ति मिलनी बड़ि मुश्किल असअ । हामअ हर मोडअ पांदै सच्चे दोस्तो रा इंतजार रअ। परअ भगवान कबै-कबै म्हारि मनोकामना पूरी करअ। सच्चा दोस्त बणना अरअ बणावणा बड़ा मुश्किल हअ। हामो इशा दोस्त मिलना चेंई जो आपणे दोस्तो बुराई दअ दूर राखअ, म्हारि गलती हामअ बताअ रअ हमेशा म्हारा साथ निभाअ।
-अजय, दसवीं

दुर्गा माँ रा मेला साधुपूल
साधुपूल रा दुर्गा माँ रा मेला बड़ा प्रसिद्ध असअ। साधुपूल जेती दुर्गा माँ रा मन्दिर असो। तेथी एक नदी बी असअ। तेस नदी रा नांव अश्वनी नदी असअ। दुर्गा माँ रे मेले री तैयारी चऊ-पांजो देढ़े पैलै शुरू होइ जाअ। ऐती रे आदमी कमैटि बणाये रो पैसे कठे करअ। तबे जो पैसा कठा ओ तिनी साए मन्दिर री मरम्मत करो। ऐस मेळै दी खूब सारी दुकानि लागो। दुकानों दे माठे-माठे छोटु रे खिलौणे, रंग-बिरंगी चूड़ी, अरअ कई छोटी-मोटी चीजों मिलो। ऐति झूले बि लागो तिन्दे माठे-माठे छोटु त का बड़े-बड़े भी झूलो। दुर्गा माँ रे मेले दी सबी दअ जादै मिठाई री दुकानअ लागअ मिठाई री दुकानि दी जलेबी, बर्फी, पकौड़े, छोले-पूरी सब ठेऊं मिलो। ऐति रै लोग मेले दी सबी द जादे जलेबी खाओ। ऐती कई तरहा रे खेल खेलो जिशे कबड्डी, कुश्ती आअ झोटै रि लड़ाइ। ऐति कल्होगो स्कूल रे छोटु-छोटी सांस्कृतिक कार्यक्रम करो। ऐति रै मेले दे मुख्य अतिथि बि आओ जो मन्दिर कै अरअ सांस्कृतिक कार्यक्रम करनि आळै छोटु कै पइसे देइ जाओ। बैळकै चऊ-पांजो बजे कुश्ती शुरू ओए जाओ तैनि देखणि कै भरी सारे आदमी कठे होअ। जो कुश्ती री माली जितो तेसके ईनाम मिलो। सातो-आठो बाजे आदमी घरो के जांदे लागि जाओ। लोग घरो के मिठाई बि न्हीं जाओ। ए मेला नवम्बर महीने दा मनाया जाओ। ईशा होअ बे दुर्गा माँ रा साधुपूल रा मेला।
-रोजिका मेहता, +2 (वाणिज्य)

ठगड़ै रि शीख
ठगड़ै रि ठगड़ेई रअ आंवले रि मठेई
इनि रा स्वाद बादअ-बादअ दा ई आओ।
जो चालि गोआ इनि बातो पांदै
बादअ दा से सफलता पाओ।
जलाइ सकै तअ प्यारअ रै
दीप इ जलाए
कसरा जीऊ जलावणा न शिखै।
कसी बणाई, सकें तो माछ ही बणाए
हैवान बणावना न शिखै।
भला न करि सकअ तअ बुरा करना न शिखे
अमृत न पिआइ सकै तो जयर पिआवंणा न शिखै।
आपि बिचै मिली जुलि रो रवै, लड़ना न शिखै
सुलटी बाट ही बताए उल्टी बतावणि न  शिखै।
बणाइ सकै तअ कसरै घर इ बणावै घर गशेवणैं न शिखै।
लगाई सके तो बगीचै ही लाऐ
डाळ काटणे न शिखै।
-कमलेश शर्मा, +2 (वाणिज्य)

गुरु शिष्य रा रिशता
गुरु शिष्य रा रिशता ए बड़ा महान् गुरु शिष्य के देअ ज्ञान
गुरु करो ए शिष्य रे जीवनअ दे उजाला दूर करी देओ से अज्ञान
ते तबै बी नी जाणो क्यों शिष्य नहीं करदे न गुरुजनअ रा सम्मान
तिन रा बादअदअ करअ अपमान
इशु करि रअ तिनअ भुगतना पड़अ नुकशाण
गुरु शिष्यों रै बारै दै सदा सोचअ ए महान्
तेबी शिष्यों गुरुओं साए कओ ए अनजान।
तिना दा कोए नी करदे सम्मान
बस आऊं चाऊ गुरुओं के देना सदा सम्मान
नेई शिष्य रा रिशता ए बड़ा महान्-महान्।
-रजनीश कुमार, +2 (मानविकी)

मांछअ रि देही कुए बणि अ?
जिशै बहोत सारी सौकणि एकि पति आपणै-आपणै कनारै खिंचो, तिशै इ म्हारी आत्मा कै बि जीभ स्वादिष्ट खाणै रै कनारै, प्यास चिशअ रै कनारै अरअ चामड़ि, पेट, कान बि आपणै-आपणै कनारै खिचअ। नाक रअ आखि बि आपणै-आपणै कनारै खिचअ। एस तरा करमअ रअ ज्ञानअ री इन्द्री जीवअ हमेशा दुखी करदी रअ।
पइलै भगवानै तरहा-तरहा रै जीव पइदा कीयैं, परअ तिनअ सबि बणाइ रअ बि तेस संतोष ना होआ। तबै तिणियै आदमि बणाया। आदमी हागै बुद्धि असअ जनिये ए परमात्मा साथि मिलि सकअ। इशै मांछो बणाइ रअ परमात्मा बहुत खुश होआ।
  -श्रीमद्भागवत महापुराण, 11.9.27-28

जीवन रे मंत्र -
1.   जीवन मांए तीन चीजों एकी बारे मिलौ हैं-     मां, बाप अरअ जवानी।
2.   ऐ तीन चीजों कसी री बी प्रतिक्षा नी करदी-    समय, परिवर्तन र मौत।
3.   ऐ तीन चीजों हमेशा दिल माए औणी चेई- दया, क्षमा र नम्रता।
4.   इन तीन चीजों के कोई चोरी नी सकदा-भाग्य, बुद्धि र शिक्षा।
5.   ये तीन चीजों आदमी के दफनाएं देयो-आलस्य, दरिद्रता र बुरी संगत।
6.   ऐ तीन चीजों आदमी री सबी दो बड़ी शत्रु अरौ-अहंकार, ईर्ष्या र रोश।
-अरुणा, +2 (कॉमर्स)


Commerce Section



वाणिज्य एक पसंदीदा विषय
यह अत्यधिक हर्ष का विषय है कि हमारा विद्यालय अपनी वार्षिक पत्रिका हिमनयनीका दूसरा संस्करण प्रकाशित कर रहा है। विद्यालय का प्रयोजन ही विद्यार्थी के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना है। विद्यालय पत्रिका स्कूल की वर्ष भर की क्रियाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विद्यालय पत्रिका के माध्यम से जहां एक ओर विद्यालय में की गई समस्त गतिविधियों की जानकारी मिलती है, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थियों को अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अवसर भी मिलता हे। विद्यालय पत्रिका विद्यार्थियों को अपने विचार व्यक्त करने, लेखन प्रतिभा प्रदर्षित करने और उसे निखारने का सुअवसर प्रदान करती है। लेखन एक कला है और इसका जितना अभ्यास किया जाए इसमें उतना ही निखार आता है।
उपभोक्तावाद के इस युग में वाणिज्य एक पसंदीदा विषय के रूप में उभर कर सामने आया है। यह हम सभी की जिन्दगी से जुड़ा हुआ विषय है। प्रबंध की आवश्‍यकता न केवल व्यवसाय में, अपितु हमारी वास्तविक जिन्दगी में भी होती है। प्रबंध के मूलभूत तत्व यथा नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन  एवं नियंत्रण के बारे में जानकारी न केवल हमें व्यवसायिक उपक्रम को चलाने के लिये आवष्यक होती है, बल्कि निजी जिन्दगी में भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। वाणिज्य के अंतर्गत लेखांकन एवं प्रबंध के अध्ययन के साथ-साथ अर्थ शास्त्र एवं सांख्यिकी का भी  प्राथमिक ज्ञान हो जाता है, जो न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि दैनिक जीवन में पेश आने वाली समस्याओं को समझने एवं सुलझाने में भी सहायक है। स्वरोजगार के दृष्टिकोण से भी वाणिज्य विषय सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हो रहा है। सबसे अहम बात यह है कि कला एवं विज्ञान विषय में जहाँ रोजगार के अवसर सिमटते जा रहे हैं, वाणिज्य में रोजगार की संभावनाएँ बढ़ती जा रही हैं। यहाँ तक कि डाक्टर एवं इंजीनियर भी प्रबंध के गुर सीख रहे हैं।
विद्यालय पत्रिका के इस वाणिज्य अनुभाग में सभी विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा दिखाने की कोशिश की है, आशा है कि यहाँ प्रस्तुत लेख सभी का ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन करेंगे।
-सुभाष चंद शर्मा
प्रवक्ता, वाणिज्य

Reserve Bank of India (RBI)
 The Reserve Bank of India was established in 1935. It was nationalized in 1949. The Reserve Bank of India, as the Central Bank of the country, performs of following functions:
(i)       Issue all other notes except one rupee notes.
(ii)    Control over commercial banks to keep a percentage of their time and demand   liabilities with it.
(iii)     Act as banker to the government.
(iv)     Maintain external value of the rupee.
(v) Publish financial statistics periodically.
(vi)     Accepts deposits from the Central Government, State Government, local bodies and scheduled banks.
(vii)    Purchase and sell bill and their discounting.
(viii)   Provide accommodation to State Government, scheduled banks etc.
  Reserve Bank of India is divided into separate department-
a)        Issue Department
b)        Banking Department
-Konika Verma, +2 (Commerce)

Business Networking

The key to true business networking is the establishment of a mutually beneficial relationship and that’s an incredibly rare event at the standard shake-hands-and-exchange-your-business-card events that are touted as business networking ‘opportunities’.
The purpose of business networking is to increase business revenue one way or another. The thickening of the bottom line can be immediately apparent as in developing a relationship with a new client or develop overtime as in learning a new business skill.
The best business networking groups operate as exchange of business information, ideas and support. The best business networking groups operates as exchange of business information, ideas and support. The most effective skill for effective business networking is listening focusing on how you can help the person you are listening to rather then on how he or she can help you is the first step to establishing a mutually beneficial relationship.
-Sonali Mehta, +2 (Commerce)


Business Quiz
Q.1  Who presented the first budget of Independent India?
A.        R.K. Shanmukhan Chetly
Q.2 What did the Government of India do for the first time in 1861?
A.        Issued paper Currency.
Q.3    Which is the oldest   stock exchange in the world?
A.        Amsterdam Stock Exchange.
Q.4      What is ‘Yellow Dog Contract?’
A.        When the worker agrees not to join a union.
Q.5      What is the full form of ‘SAFTA’?
A.        Sought Asian Free Trade Agreement.
Q.6      In which year the East Indian Railway Company was established?
A.        In 1844.
Q.7      Which country is the 2nd largest tractor manufacturers in the world?
A.        India.
Q.8      Who is the woman to join the Indian Police  Service?
A.        Kiran Bedi.
Q.9      What is the full form of SEBI?
A.        Securities and Exchange Board of India.
Q.10   In which year and by whom the book  “Principles of Scientific Management”              was wrote?
A.        In 1911 by Fredrick Winslow Taylor.
-Konika Verma, +2 (Commerce)

The Problem of Unemployment
The problem of unemployment is very acute today. It is haunting every aspect of your peasants, middle class people, students and others. Thousands of educated or uneducated people are wandering in search of jobs from pillar to post. But everywhere they are greeted by despair, pain and disappointment. Unemployment is the first sign of national degeneration. It encourages dishonesty, corruption and glorifies falsehood.  Freedom has no meaning for those who are jobless. If the demon of unemployment is not finished it will finish us. The main causes which are responsible for this mass unemployment are that young men are not given practical or technical education. Increasing population in India is great hurdle. The supply of labor is in excess of the demand for labor. The result is unemployment. Capitalism is also responsible for the increase of unemployment.
Solution: The problem should be solved by family planning and other methods. The government should reform its method of planning various industries and schemes. More attention should be paid to technical and practical education. The prosperity of a country depends on full employment. It is responsibility of the government to give the jobs to the unemployed people and save them from starvation and death.
-Konika Verma, +2 (Commerce)

Terms used in Stock Exchange Dealings
1.         Badla and Cantango: As a result of decline in the price of securities, sometimes the date of transactions has to be postponed by the bull and for this arrangement the financer has to be paid interest. This interest is called Badla and Cantango.
2.         Bear: This is a type of speculator who enters into the sale contract with the expectations that price of security will decrease before the date of delivery.
3.         Bear Market: If, for a long continued period, stock market face a fall in prices of securities, then this market is called Bear Market.
4.         Bid Price: The price which a customer is ready to pay for a security is called a Bid Price.
5.         Blue Chip Shares: Shares of a reputed profit making company is called Blue Chip Shares.
6.         Bourses: Another name of stock exchange.
7.         Broker: The member of stock exchange who sale and purchase securities on behalf of the non-members is known as Broker.
8.         Cornering: It means holding almost the complete supply of a particular security by an individual or a group of individual.
9.         Correction: It means the movement of stock market in opposite direction.
10.      Euro Bond: Those Bonds which are issued outside the country.
11.      Inside Trading: Those dealings which are done on the basis of unpublished information affecting prices.
12.      Kerb Trading: Trading before and after working hours of stock exchange.
13.      Lame Duck: When a bear feels it difficult to fulfill his promises he struggles in the same way as we find a lame duck struggling.
14.      Call option: This is a contract between option holder and option seller which after paying a fixed option fee, gives right to option holder to purchase are not to purchase a security on a pre-decided price on a pre-decided date.
15.      Sensex: The index which is based on shares of 30 companies of Bombay Stock Exchange and shows the increase and decrease in market price of shares is known as sensex.
-Konika Verma, +2 (Commerce)